शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

अंग्रेजी शब्द नियर और भोजपुरी शब्द नियरे बा में साम्यता

यह तो अजीब संजोग है कि अंग्रेजी का नियर हमारे नियर बा से मिलता है. तर्क यह दिया जाता है कि आकस्मिक संजोग है तो यह भी तर्क दिया जाता है कि अंग्रेजी और हमारे देश की भाषा एक ही कुल की है. संभव तो और भी बहुत हो सकता है लेकिन गर्व इस बात  की है कि अंग्रेजी को सभ्य भाषा मानने वाले और उसे अधिक महत्व देने वाले भी यह जान ले कि हमारी भाषा भी कम समृद्ध नहीं है. संभव हो अंग्रेजों ने हमारे नियर बा कि चोरी कर अपने में मिला लिया हो.

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

प्रयत्न 
लहरें, बार-बार
किनारे से टकराकर 
लौट जाती हैं ,
पुन:  आती हैं 
उसी वेग से 
सहस   के साथ  
निडर होकर  
पुन: लौट जाती है 
विवश होकर 
समझौता कर लेती हैं 
परिस्थितियों से 
पर प्रयत्नशील रहती हैं 
इसी आशा में 
कि मंजिल अवश्य मिलेगी 
यद्यपि 
बार- बार वे चोट खाती हैं 
अन्दर पीड़ा महसूस करती हैं 
पर अपनी व्यथा 
व्यक्त नहीं करती 
किनारे जब अभिमानी होकर 
चुनौती देते हैं
तब वे भी 
गर्जना करती हैं 
पर उनके समक्छ
कभी झुकती नहीं 
प्रत्न्शील रहती है 
इसी आशा में 
कि सफलता अवश्य मिलेगी.    

बुधवार, 24 नवंबर 2010

अपनी बातें

पता नहीं कुछ बातें इतनी गहरी चोट क्यों पहुचती हैं या फिर हमारी सोंच का नजरिया ही अलग हो । आशावादी हूँ पर हूँ तो इंसान। मुझमे भी शांत नदी की जलधारा के समान गुण है तो समुद्र के समान प्रचंड वेग भी। हिम्मत ने मुझे संघर्षरत बनाये रखा है , शायद मंजिल अभी और हो।
तीस नवम्बर को शादी की दसवी सालगिरह होगी , बहुत कुछ पायी अब तक जीवन में , उम्मीद से भी अधिक शायद। इसी तारीख को डॉक्टरेट की डिग्री भी पायी। यह तारीख मेरे लिए काफी महतवपूर्ण बन चुका है। अतः मेरी उम्मीद काफी अधिक हो गयी है इस तारीख से। पाने और खोने के साथ भी जीवन चलता रहता है, रास्ते मिलते है अनेक पर मन की आवाज हमें जिस ओर ले जाती है हम उधर ही निकल पड़ते हैं। हम दोनों एक दूसरे का हाथ थाम कर ही चलते हैं लेकिन मुझे इंतजार है उसका जो पीछे से मेरा आँचल पकड़कर माँ बोले .....................पता नहीं कब वो आएगा या फिर ..........................

सोमवार, 22 नवंबर 2010

जीवन एक आशा

हम सभी जीवन जीते हैं, अपनी सोंच, अपने अतीत और अपने भविष्य कि कल्पना के साथ। प्राप्ति और अप्राप्ति का लेखा जोखा भी हमारे साथ ही चलता रहता है तथा हमारा मन यह सोंचता रहता है कि हमने क्या पाया और क्या खोया ?पाने पर जितनी ख़ुशी होती है, खोने पर उतना ही दुःख और उसी के साथ चिंतन भी बढ़ जाता है।
इन सब से अलग यदि हम आशावादी सोंच रखे तो जीवन सचमुच चिरयौवन ही बना रहेगा। न खोने का डर होगा और न पाने की लालसा, बस एक आनंद की अनुभूति, उल्लास का अनुभव तत्पश्चात अप्रतिम शक्ति। आशा मानसिक थकान को मन के द्वार तक आने नहीं देती। यह शारीरिक उर्जा में परिवर्तित होकर थकान को मिटाती है।
आशा सर्वोतम ज्योति: ।
निराशाया: समम पापम मानवस्य न विद्यते ।
ता समूलं समुत्सर्य हयाशावाद परो भव । ।
अर्थात आशा सर्वोतम ज्योति है और निराशा के समान दूसरा पाप नहीं है , अतः मनुष्य को चाहिए कि वह पाप रूपी निराशा को समूल हटा कर उसे नष्ट कर दे । मनुष्य की सारी उन्नति , जीवन की सफलता और सृष्टी की चरितार्थता आशा में ही प्रतिष्ठित है।

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

रूद्र देवता का एक रूप जहाँ संहारक था वही विपतियों से निवारण की शक्ति भी उनमे थी। जब उनका उग्र और संहारक रूप शांत हो जाता है तो वे शंकर, शिव या शम्भू बन जाते हैं। इन्हे भोला भी कहा जाता है क्योंकि ये भक्तों पर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं।
शिव सर्वब्यापी और पूर्ण ब्रम्हा हैं और इनके रूप और गुण भी अनंत है ।
लोक्धात्री तिव्यां भूमिः पादो सज्ज्न्सेवितो ।
सर्वेषाम सिध्योगानाम्धिष्ठान्म तवोद्रम ।
मध्येन्त्रिछ्म विस्तिर्न्म तारगंविभुशितम ।
तारापथ एवाभाती श्रीमान्हार्स्त्वोरसी ।
दिशा दश भुजस्ते वे केयुरंग्द्भुशितः ।
विस्तीर्ण परिनाह्स्च निलाम्बुद्च्योप्म्ह ।

सोमवार, 27 सितंबर 2010

शिव जब दुष्टो का दमन तथा सृष्टी का प्रलय करते है तो रूद्र रूप धारण कर लेते हैं और जब वही देवता सृष्टी का पालन और धारण करते है तो "शिव" या "शंकर" कहलाते है। ऋग्वेद के एक मन्त्र में प्रार्थना की गयी है-
"हे रूद्र ! क्रोध वश आप हमारे बच्चों, वंशजो , पशुओं और अश्वो का विनाश न करो। हम हविशों के साथ तुम्हारा आवाहन करते है ।

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

आदि देव शिव एवं उनका संप्रदाय

सनातन वैदिक देवताओं में शिव आदि देव मने जाते है, क्योंकि सिन्धु घटी सभ्यता के अवशेषों में बहुत सी ऐसी मुद्राएँ मिली हैं जिसमे एक ऐसे देवता की प्रतिमा अंकित है जिसके तीन मुख है और जिसके सिर पर सिंग बनाये गए हैं । इस प्रतिमा के चारो ओर हिरन, हाथी, गैंडा , भैस, और शेर अंकित है । विद्वानों द्वारा इस प्रतिमा की कल्पना पशुपति शिव के रूप में की गयी है , जिसकी पूजा सैन्धव कल में प्रचलित थी और जिसे कालांतर में आर्य जाति ने भी अपना लिया । अतः शिव को सर्वाधिक प्राचीन देवता माना जाता है।
वैदिक साहित्य में शिव के लिए "रूद्र" और "शिव" दोनों नामो का उल्लेख मिलता है । "रूद्र" उनके भीषण या रौद्र रूप को प्रकट करने के लिए और "शिव" उनके कल्याणकारी रूप के लिए कहा गया है।

रविवार, 19 सितंबर 2010

सूरज की तपती गर्मी से
सूखी धरती सारी
फिर बारिश की बूंदों से
चहुँ ओर हुई हरियाली
हरी हरी बगिया में फिर से
उड़ती तितली रानी
और किसानो ने फिर से
खेतो में बीज बिछाई
काले काले मेघो से
बच्चो ने आस लगायी
और लिए कागज की कश्ती
फिर से दौड़ लगायी

शनिवार, 7 अगस्त 2010

भगवान शिव आशुतोष

भगवान शिव का एक नाम आशुतोष भी है। इसका अर्थ है "आशु: तुष्यति इति आशुतोष:" , अर्थात जो अति शीघ्र संतुष्ट हो जाए, वही शिव है ।
शिव के शाश्वत स्वरुप का वर्णन अनंत है और हम इनके स्वरुप के जितनी गहराई में गोता लगाएँगे उतनी ही अनुभूति और अभूतपूर्व शांति मिलेगी । औघरदानी बाबा भोलेनाथ , अपने भोलेपन के लिए प्रसिद्ध हैं । बाबा के पास मनौतियों कि कमी नहीं होती और न ही भक्तों कि कमी होती है। ऐसे भी भक्त अनेको संख्या में हैं जो शारीर को नाना प्रकार से कष्ट देते हुए उनकी आराधना करते हैं और संभव है कि उनकी इच्छा पूर्ण भी होती है लेकिन हमारे भोले नाथ बस एस बार ह्रदय के सत्य पुकार पर भक्त की सुन लेते हैं।

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

शिव को जल क्यों चढाया जाता है

सावन मास आरम्भ हो चुका है और कवंरियों का जलाभिषेक के लिए गंगा जल ले जाने कि परम्परा शुरू हो चुकी है, लेकिन हम सभी जानते है कि भोलेनाथ को जल ही प्रिय है । जल ही जीवन है और हमारे प्रभु आम जनमानस को यह सन्देश भी देते है कि हमारा जीवन जल के बिना असंभव है। शिव के जल चढाने के बारे में एस कथा प्रसिद्ध है कि समुद्र मंथन के पश्चात निकले विष को देखकर सारे देवता भयभीत हो गए और शिव से रक्षा के लिए प्रार्थना क़ी तब शिव ने सृस्ति क़ी रक्षा के लिए विष का स्वयं पान कर लिया जिससे उनका कंठ नीला हो गया, तभी से वो नीलकंठ कहलाने लगे। विष पीने के पश्चात शिव के शरीर क़ी जलन को शांत करने के लिए उन्हें जल चढ़ाया जाता है। यह परम्परा कब से आरम्भ है कोई नहीं जानता लेकिन कहा जाता है कि प्रभु राम ने भी कांवर से जल यात्रा कर शिव का जलाभिषेक किया था।

सोमवार, 26 जुलाई 2010

सावन mahina और शिव की आराधना

param pita परमेश्वर का शिव swarup sarvjan priya है. प्रभु की आराधना me lin logon ke beec सावन ke पवित्र mas में kisi bhi tarah का bhedbhav nahi rahta है. प्रभु की आराधना का sarvotam rup झारखण्ड राज्य के देवघर जिले में dikhai deta है jahan प्रभु को बाबा बैधनाथ के nam se puja jata है. pure सावन mas में yeh pvitra nagri वृहत आराधना का केंद्र बन jati है. kone kone se log es nagri में aakar swayam को dhnya samjhte है.

सोमवार, 14 जून 2010

आस्था

जीवन जीने की कला हमारे स्वयं पर निर्भर करता है। हम चाहे जिंदगी को जिस रूप में जिए लेकिन जीते तो हैं । हमने महसूस किया है कि हमारे जीवन में एक मुख्य स्थान आस्था का है। जो लोग नास्तिक हैं वो भी किसी न किसी चीज पर विश्वास अवश्य रखते हैं, फिर आस्थ्वन की तो बात ही अलग है। हम अपने सारे दुःख एक आस्था के बल पर ही सह लेते हैं और अछे समय का इंतजार करते हैं । हमारे भीतर के बल को बढ़ाने का काम तथा विशेष परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत हम पाते हैं। यह आस्था कई रूपों में हमारे समछ आती है लेकिन हर रूप में हमें बल प्रदान करती है पर इसके स्वस्थ स्वरुप को अपनाना ही हमारे लिए उचित है.

सोमवार, 3 मई 2010

अनुभूति

सारे रास्ते बंद हो जाने के बाद जब हम परमपिता कि शरण में जाते हैं तो हमें असीम शांति कि अनुभूति होती है और यही हमें जीने के और भी रास्ते दिखाती है। हम न चाहते हुए भी उसी राह पर चल पड़ते हैं जिस पर हमारी आत्मा कहती है और हम इसे ही ईश्वर का सदेश मान बैठते हैं। यही हमारे जीने कि राह है।

मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

शांति की खोज

शांति की खोज में हम कितना भटकते है फिर भी मन अशांत रहता है आखिर क्यों? मन की उलझान को असीम शांति की ओर ले जाने का हमारा प्रयास यह सूचित करता है कि हम वापस अपनी पुरातन परम्परा की ओर लौट रहें है. वेदों की जो प्राचीन परम्परा रही है वह अब हमें वापस अपनी ओर खीच रही और हम पुनह जप तप हवन की शरण में है। काफी अछा लग रहा है अपनी परम्परा को पुनह सँभालते.

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

Dharmik astha aur badhta ganga pradushan

yeh sach hai ki hamari astha hamari vishal evam vaibhvshali sanskriti ka stambh hai aur iske mul me svardik pujya ganga ka mahatvapurna sthan hai lekin kaphi dukh phuchta hai ganga ki durdsha dekhkar. jis ganga ki kalkal dhara evam vishal swarup hamare garv ka pratik tha vah aaj nale ka rup leti ja rahi hai. ganga ke dono kinaro ke beech ki simtti duria yeh bata rahi hai ki ganga hamse ruth kar ja rahi hai aur ham aphsos matr hi karte rahte hai.

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

kaun bevfha

ek pati-patni ke baare me . patni bimar aur maut se lad rahi hai. pati se bahut pyar karti hai. pati ko sukh nahi de sakne ke karn chintit hai. vah chahti hai ki pati dusri shadi uske samne hi kar le aur eske liye pati ko tlak bhi dene ke liye taiyar hai. pati bhi use talak dekar dusri shadi karna chahta hai, par kya vah patni ke sath bevphai nahi kar raha? vah janta hai ki patni dil se yeh nahi chahti lekin uski khushi ke liye talak bhi dene ke liye taiyar hai aise me kya pati bevpha nahi huwa?

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

ek parmpra manhus karar dene ki

kaphi vayathit kar gaya yeh vakya jab nai bahu sasural aayi aur hapte bhar baad hi sasur ka accident ho gaya. ssur hospital men aur edhar bahu manhus karar di gayi. charo taraph se vyang vaan, jo jitana tikha chla sakta tha chalata tha aur yes kam aurte hi adhik karti kyonki eski thekedari unhe virasat me milihoti hai. kya yeh kisi na kisi rup me hamesh jari rahega? kash ki hamari sonch badal jay.

बुधवार, 10 फ़रवरी 2010

aajadi udne ki

jite to sabhi hai lekin jina vahi hota hai jo dil se jiye. aurton ko janm se hi aise bandhno me jina hota jisme uljh kar vo apne jine ka maksad dhudhti rah jati hai aur yah maksad unhe antim samy tak nahi miil pati. kash ki yah ajadi hame bhi hoti ki khitij ke us par pahuch kar eak nayi duniya khoj lete. pankh to hame bhi hai lekin koshish hi nahi hoti. dar lagta hai bandhno ko todh aage badhne se. simta jivan hamari sonch ko bhi sankuchit bana chuka hai. shayad udne ke liye ek prerna ki jarurat hai.